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नीतीश कुमार के बिना विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकती भाजपा : तारिक अनवर

  • PublishedMarch 5, 2025

पटना बिहार में इस साल के अंत में विधानसभा के चुनाव होने हैं। मौजूदा सरकार में सहयोगी भाजपा और जदयू में नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ने को लेकर सहमति बन गई है। हाल ही में भागलपुर की रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार की जमकर तारीफ की थी।
कांग्रेस नेता तारिक अनवर ने राज्य में भाजपा की स्थिति पर तंज कसते हुए कहा है कि वह जदयू के बिना जीत हासिल नहीं कर सकती।

तारिक अनवर ने कहा, “नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ना भाजपा की मजबूरी है। भाजपा बिना नीतीश कुमार के सहारे के चुनाव नहीं जीत सकती। पिछली विधानसभा चुनावों के परिणाम आपके सामने हैं।”

महाराष्ट्र समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी द्वारा मुगल शासक ‘औरंगजेब’ की तारीफ करने पर कांग्रेस सांसद तारिक अनवर ने कहा, “जख्म को कुरेदना अच्छी बात नहीं है। अंग्रेजों ने 200 साल तक हम पर राज किया। लेकिन, भाजपा कभी नहीं कहती है कि अंग्रेजों से बदला लेना चाहिए। दूसरी ओर, इस पर बेवजह की बहस हो रही है। चंगेज और उसके परिवार के लोग 400 साल पहले आए थे, और उनके कार्यों का पूरा विवरण इतिहास के पन्नों में दर्ज है, जिसमें सभी की भूमिका भी शामिल है।”

इलाहाबाद हाई कोर्ट के संभल मस्जिद को विवादित ढांचा स्वीकार करने पर कांग्रेस नेता ने कहा, “मेरी राय यह है कि साल 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान जब नरसिम्हा राव पीएम थे, तब संसद से एक कानून पास हुआ था। उसमें कहा गया था कि भविष्य में जो भी धार्मिक स्थल होंगे, उन पर उस धर्म के लोगों को वर्चस्व होगा। अफसोस की बात है कि कानून बनने के बावजूद, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि 1947 के बाद जितने भी धार्मिक स्थल हैं, वह उन धर्म के लोगों के अधिकार में होगा, कोर्ट की कोई टिप्पणी आती है तो भ्रम की स्थिति पैदा होती है।”

भूमिका

बिहार की राजनीति हमेशा से ही जटिल और बहुआयामी रही है, जहां गठबंधन की राजनीति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हाल ही में कांग्रेस नेता तारिक अनवर ने एक बड़ा बयान दिया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीतीश कुमार के बिना बिहार विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकती। यह बयान राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया है और इसके पीछे कई कारण हैं। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि क्यों भाजपा को बिहार में सत्ता बनाए रखने के लिए नीतीश कुमार की आवश्यकता है, उनका राजनीतिक प्रभाव कितना मजबूत है, और अगर भाजपा नीतीश कुमार से अलग होती है तो उसके लिए क्या चुनौतियाँ हो सकती हैं।


नीतीश कुमार का बिहार में राजनीतिक प्रभाव

नीतीश कुमार बिहार की राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं। उन्होंने अपनी नीतियों, सुशासन और विकास कार्यों के दम पर राज्य में एक अलग पहचान बनाई है। वे 2005 से लेकर अब तक कई बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और जनता दल (यूनाइटेड) यानी JDU के प्रमुख नेता हैं। उनकी छवि एक ऐसे नेता की है, जिसने बिहार को बुनियादी ढांचे, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर आगे बढ़ाया है।

नीतीश कुमार का कुर्मी-कोइरी समुदाय पर मजबूत पकड़ है, जो बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक माना जाता है। इसके अलावा, उन्होंने अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और महिला मतदाताओं को भी अपने पक्ष में करने में सफलता पाई है। यही वजह है कि जब भी बिहार में विधानसभा चुनाव होते हैं, उनका नाम एक महत्वपूर्ण फैक्टर बन जाता है।


भाजपा और नीतीश कुमार का गठबंधन: सफलता की कुंजी

भाजपा और जदयू का गठबंधन बिहार में कई बार चुनावी सफलता का आधार बना है। 2020 के विधानसभा चुनाव में भी यह गठबंधन सत्ता में आया था, हालांकि भाजपा ने तब जदयू से ज्यादा सीटें जीती थीं। बावजूद इसके, नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया गया, क्योंकि भाजपा यह अच्छी तरह समझती थी कि बिहार में नीतीश कुमार का व्यक्तिगत प्रभाव काफी बड़ा है।

भाजपा के पास बिहार में अपना एक बड़ा कोर वोट बैंक (ऊपरी जाति, शहरी मतदाता और पारंपरिक हिंदू समर्थक) जरूर है, लेकिन यह उतना व्यापक नहीं है कि वे अकेले सत्ता में आ सकें। बिहार की जातिगत राजनीति में भाजपा को अन्य समुदायों को साथ लाने के लिए सहयोगी दलों की जरूरत होती है, और नीतीश कुमार इसमें सबसे महत्वपूर्ण कड़ी हैं।


अगर भाजपा अकेले चुनाव लड़े तो क्या होगा?

अगर भाजपा नीतीश कुमार से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ती है, तो उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा:

1. क्षेत्रीय वोट बैंक की कमी

भाजपा का मुख्य समर्थन शहरी इलाकों और उच्च जातियों तक सीमित है। बिहार की राजनीति में ग्रामीण और पिछड़ा वर्ग की भूमिका सबसे अहम होती है, जहां भाजपा की पकड़ अब तक उतनी मजबूत नहीं रही है।

2. मुस्लिम और यादव वोटों का ध्रुवीकरण

अगर नीतीश कुमार भाजपा से अलग होते हैं, तो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और कांग्रेस को फायदा हो सकता है। बिहार में यादव और मुस्लिम वोट बैंक पहले से ही तेजस्वी यादव के नेतृत्व में संगठित हो रहा है। भाजपा को इसका नुकसान झेलना पड़ सकता है।

3. महिला मतदाताओं का रुख

नीतीश कुमार के शासन में महिलाओं के लिए कई योजनाएँ चलाई गई हैं, जैसे आरक्षण, स्वयं सहायता समूह, छात्राओं को साइकिल योजना आदि। इसका असर यह हुआ कि महिला मतदाताओं में उनकी पकड़ मजबूत हो गई। अगर भाजपा अकेले चुनाव लड़ती है, तो महिला मतदाता जदयू और अन्य दलों की ओर जा सकते हैं।

4. जातिगत समीकरणों की उलझन

बिहार की राजनीति जातिगत समीकरणों पर निर्भर करती है। भाजपा के पास उच्च जातियों का समर्थन है, लेकिन कुर्मी, कोइरी, अति पिछड़ा वर्ग और दलित वोट को जोड़ने के लिए उसे जदयू जैसे दल की जरूरत होती है। अगर जदयू अलग हो जाता है, तो यह वोटबैंक भाजपा से छिटक सकता है।


भाजपा के लिए नीतीश कुमार क्यों जरूरी हैं?

1. विश्वसनीय नेतृत्व

नीतीश कुमार की छवि एक ईमानदार और विकासशील नेता की बनी हुई है। भाजपा के लिए यह जरूरी है कि उनके साथ ऐसा चेहरा रहे, जो सभी समुदायों को साथ लेकर चले।

2. गठबंधन राजनीति का अनुभव

नीतीश कुमार गठबंधन की राजनीति में माहिर हैं। वे न सिर्फ भाजपा बल्कि विपक्षी दलों के साथ भी संवाद बनाए रखते हैं। उनकी यह क्षमता उन्हें बिहार की राजनीति में अपरिहार्य बनाती है।

3. मोदी फैक्टर का असर कम

बिहार में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता जरूर है, लेकिन वह राष्ट्रीय मुद्दों तक सीमित रहती है। जब राज्य के मुद्दों की बात आती है, तो लोग मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को ज्यादा पसंद करते हैं।


तारिक अनवर का बयान क्यों महत्वपूर्ण है?

कांग्रेस नेता तारिक अनवर के इस बयान का मतलब यह है कि बिहार में भाजपा अकेले दम पर सत्ता में नहीं आ सकती। उनका यह बयान भाजपा और जदयू के बीच के रिश्तों पर भी सवाल उठाता है

तारिक अनवर का यह बयान राजनीतिक संकेत भी देता है कि अगर भाजपा और जदयू के रास्ते अलग होते हैं, तो विपक्षी दलों को इसका फायदा मिल सकता है।


निष्कर्ष

भाजपा और नीतीश कुमार का साथ रहना न सिर्फ उनके लिए फायदेमंद है, बल्कि बिहार की राजनीति की वास्तविकता को भी दर्शाता है। भाजपा के लिए अकेले चुनाव लड़ना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि बिहार की जातिगत राजनीति, महिला वोट बैंक और ग्रामीण क्षेत्रों में पकड़ के लिए उसे सहयोगी दलों की जरूरत होती है।

अगर भाजपा और जदयू का गठबंधन टूटता है, तो इसका सीधा फायदा तेजस्वी यादव और विपक्षी दलों को होगा। कांग्रेस और राजद पहले से ही भाजपा के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं, और ऐसे में अगर नीतीश कुमार विपक्षी खेमे में जाते हैं, तो भाजपा के लिए बिहार जीतना मुश्किल हो सकता है।

इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि नीतीश कुमार के बिना भाजपा बिहार में विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकती, और यही बात तारिक अनवर के बयान को और अधिक प्रासंगिक बनाती है।

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