आखिर क्यों पीएम मोदी 12 साल बाद संघ मुख्यालय गए? यहां जानिए पीएम के मोहन भागवत से मुलाकात के मायने

प्रधानमंत्री मोदी रविवार को 12 साल बाद नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय पहुंचे। एसोसिएशन अपनी स्थापना का 100वां वर्ष मना रहा है। रविवार को जब प्रधानमंत्री मोदी आरएसएस मुख्यालय पहुंचे तो उस समय चैत्र नवरात्रि और हिंदू नववर्ष का पहला दिन था।
इससे पहले पीएम मोदी 2013 में लोकसभा चुनाव से संबंधित बैठक में शामिल होने नागपुर आए थे। इस बीच, प्रधानमंत्री ने आरएसएस के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार और अन्य सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर के स्मृति मंदिर पहुंचकर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
माधव नेत्रालय के नए भवन का शिलान्यास करते हुए प्रधानमंत्री ने संघ के कार्यों की सराहना की। पीएम मोदी ने कहा कि 100 वर्ष पहले संघ के रूप में राष्ट्रीय चेतना का जो विचार रोपा गया था, वो आज विश्व के सामने एक महान वटवृक्ष के रूप में खड़ा है। आज भी यह भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना को ऊर्जा प्रदान कर रहा है। एक स्वयंसेवक के लिए सेवा ही जीवन है।
संघर्ष के बाद सुलह
आपको बता दें कि पीएम मोदी का अचानक आरएसएस मुख्यालय पहुंचना राजनीतिक विश्लेषकों के लिए काफी आश्चर्य की बात थी। लोकसभा चुनाव के दौरान जेपी नड्डा के भाजपा के आत्मनिर्भरता वाले बयान से भाजपा और आरएसएस नेतृत्व के बीच तल्खी बढ़ गई थी। चुनाव नतीजों के बाद जब भाजपा अपने दम पर सरकार नहीं बना सकी तो आरएसएस प्रमुख की ओर से कई ऐसे बयान दिए गए, जिनसे पता चलता है कि आखिरकार भाजपा क्यों हारी। इसके बाद संघ की मेहनत और रणनीति के आधार पर महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली में भाजपा की सरकारें बनीं। अब खबर यह है कि पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर भाजपा और आरएसएस के बीच तनातनी का माहौल है। ऐसे में पीएम मोदी का आना सभी अटकलों पर विराम लगाने जैसा है।
भाजपा अध्यक्ष को लेकर बनी रणनीति
भाजपा अध्यक्ष पद के लिए पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान और मनोहर लाल खट्टर के नामों पर विचार किया जा रहा है। दोनों नेता संघ पृष्ठभूमि से आते हैं। सूत्रों की मानें तो भाजपा आलाकमान इन दोनों नेताओं के पक्ष में नहीं है। पार्टी की ओर से धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव के नामों पर विचार किया जा रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या संघ और भाजपा के बीच अध्यक्ष पद को लेकर बातचीत पूरी हो गई है।
संघ की नजर विधानसभा चुनाव पर
इसके अलावा कुछ राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगा रहे हैं कि दोनों नेताओं के बीच 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर भी रणनीति बनी है। इनमें उत्तर प्रदेश, असम, तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल प्रमुख हैं। भाजपा उत्तर प्रदेश और असम में सरकार बनाने की हैट्रिक पर है। जबकि भाजपा केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में पहली बार सरकार बनाने की कोशिश कर रही है। आपको बता दें कि आज भी देश में सबसे ज्यादा शाखाएं केरल में हैं। ऐसे में इन दिनों भाजपा का पूरा फोकस दक्षिण पर है। ताकि पार्टी का विस्तार हो सके।
विपक्ष ने सवाल उठाए।
इस बीच विपक्ष ने भी सवाल उठाए हैं। शिवसेना यूबीटी सांसद संजय राउत ने बताया पीएम मोदी को आरएसएस की याद कैसे आ गई? उसे इसका एहसास आज ही क्यों हुआ? प्रधानमंत्री मोदी केवल सत्ता के लिए लोगों से जुड़ते हैं। भाजपा और आरएसएस एक सिक्के के दो पहलू हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं को और आरएसएस को बहुत कुछ दिया है। वहीं, आप सांसद संजय सिंह ने कहा कि पीएम मोदी और आरएसएस प्रमुख को जवाब देना चाहिए कि 100 साल में आरएसएस प्रमुख दलित, पिछड़ा या आदिवासी क्यों नहीं बना? 100 वर्षों में कोई महिला यूनियन अध्यक्ष क्यों नहीं बनी?
आपको बता दें कि पीएम मोदी 1972 में आरएसएस से जुड़े थे। इसके बाद वह प्रचारक बन गए। फिर वह आरएसएस के माध्यम से भाजपा में शामिल हो गए। गुजरात में संगठन की जिम्मेदारी मिली। जब वे 2001 में गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उन्हें आरएसएस से मजबूत समर्थन मिला।